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Statistics as Singular Noun and Importance of Statistics

Statistics as Singular Noun and Importance of Statistics


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Economics Online Class

Topic : Statistics As Singular Noun and Importance of Statistics

सांख्यिकी-एकवचन संज्ञा (Statistics as Singular Noun)
एकवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ सांख्यिकी विज्ञान या सांख्यिकी विधियों से है | सांख्यिकी विधियां वह विधियां हैं  जो संख्यात्मक आंकड़ों के संकलन, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा निर्वाचन का अध्ययन करती है ।

परिभाषा
क्रोक्सटन  तथा काउडेन के अनुसार, “सांख्यिकी को संख्यात्मक आंकड़ों का संग्रह करने, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा उनके निर्वचन से संबंधित विज्ञान को कहा जा सकता है ।”
सेलिगमैन के अनुसार, “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो किसी विषय पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से संग्रह किए गए आंकड़ों के संग्रहण, वर्गीकरण, प्रदर्शन, तुलना और व्याख्या करने की विधियों का विवेचन करता है ।”

सांख्यिकी अध्ययन की अवस्थाएं
एकवचन के रूप में सांख्यिकी के अध्ययन से अभिप्राय सांख्यिकी अध्ययन की विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त करना है । सांख्यिकी अध्ययन की 5 अवस्थाएं होती है।

अवस्था एक-  आंकड़ों का संकलन
अवस्था दो-   आंकड़ों का व्यवस्थिकरण
अवस्था तीन-  आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण
अवस्था चार-  आंकड़ों का विश्लेषण
अवस्था पांच-  आंकड़ों का निर्वचन

पहली अवस्था में हम आंकड़ों का संकलन करते हैं अर्थात उन्हें एकत्रित करते हैं । दूसरी अवस्था में आंकड़ों का एक क्रम, गुण आदि के आधार पर व्यवस्थितीकरण किया जाता है । तीसरी अवस्था में आंकड़ों को ग्राफ, चित्र या तालिका के रूप में प्रस्तुतीकरण किया जाता है । चौथी अवस्था में आंकड़ों का औसत, प्रतिशत, माध्य आदि के रूप में विश्लेषण किया जाता है । पांचवी तथा अंतिम अवस्था में विशेष निष्कर्ष ज्ञात करने के लिए आंकड़ों का निर्वचन किया जाता है ।

सांख्यिकीय उपकरण (Statistical Tools)
सांख्यिकी अध्ययन की प्रत्येक अवस्था में विशेष प्रकार की तकनीकी या उपायों का प्रयोग किया जाता है । इन तकनीकों या उपायों को सांख्यिकी उपकरण कहा जाता है।

उदाहरण के लिए आंकड़ों का संकलन करने के लिए संगणना या निर्देशन विधि जैसी तकनीकें हैं । आंकड़ों के व्यवस्थितीकरण के लिए आंकड़ों का विन्यास तथा मिलान रेखाओं आदि तकनीक का प्रयोग किया जाता है । आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण के लिए तालिका, ग्राफ, चित्र आदि प्रमुख उपकरण है । औसत तथा प्रतिशत आंकड़ों के विश्लेषण में प्रयोग होने वाली तकनीकें हैं | आंकड़ों का निर्वचन प्राय: औसत, प्रतिशत, सह-संबंध, प्रतीपगमन के विस्तार आदि के रूप में किया जाता है ।



सांख्यिकीय अध्ययन की अवस्थाएं तथा उनसे संबंधित सांख्यिकी है उपकरण-

अवस्था
सांख्यिकीय अध्ययन
सांख्यिकीय उपकरण
अवस्था I
आंकड़ों का संकलन
संगणना तथा निदर्शन
अवस्था II
आंकड़ों का व्यवस्थितीकरण
आंकड़ों का विन्यास तथा मिलान रेखा
अवस्था III
आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण
तालिका, ग्राफ, चित्र
अवस्था IV
आंकड़ों का विश्लेषण
औसत, प्रतिशत, सह-संबंध, प्रतीपगमन
अवस्था V
आंकड़ों का निर्वचन
औसतों, प्रतिशतों का विस्तार


अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्व
सांख्यिकी का उदय अर्थशास्त्र की आधारशिला के रूप में हुआ है। सांख्यिकी के बढ़ते हुए महत्व के कारण ही अर्थशास्त्र की विषय सामग्री में अर्थ-नीति (Econometrics) जैसे विषय का समावेश हो चुका है । टिप्पेट ने निम्न टिप्पणी करते हुए सांख्यिकी के बढ़ते हुए महत्व को स्पष्ट किया है- “एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि विश्वविद्यालयों के अर्थशास्त्र विभाग में कोरे सिद्धांतवादियों के अधीन न रहकर सांख्यिकी प्रयोगशालाओं के अधीन हो जाएं, जिस प्रकार भौतिकी और रसायन विभाग प्रयोगात्मक प्रयोगशालाओं के अधीन हैं ।”

अर्थशास्त्र में सांख्यिकी का महत्व निम्न तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-

1-आर्थिक समस्याओं के परिमाणात्मक अभिव्यक्ति- एक अर्थव्यवस्था की विभिन्न आर्थिक समस्याएं चाहे वह बेरोजगारी हो या कीमत वृद्धि इत्यादि को समझने के लिए अर्थशास्त्री सबसे पहले उस आर्थिक समस्या की परिमाणात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा उसका विस्तार से ज्ञान प्राप्त करते हैं । उदाहरण के लिए भारत में बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई है | इस कथन से हमें कोई विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं होता । इसके विपरीत यदि कहा जाए कि भारत की कार्यशील जनसंख्या का 20% भाग बेरोजगार है तो हमें स्थिति की गंभीरता का पता लग जाता है ।

2-अंतर्क्षेत्रीय तथा अंतर-समय तुलना- अर्थशास्त्री आर्थिक समस्याओं की केवल परिमाणात्मक अभिव्यक्ति ही नहीं करते । बल्कि उनकी अंतर्क्षेत्रीय तथा अंतर-समय तुलना भी करते हैं । अंतर्क्षेत्रीय तुलनाओं से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य की जाने वाली तुलना तथा इसी तरह अंतर-समय तुलना का अर्थ है- एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का विभिन्न समय अवधिओं का अध्ययन करना । उदाहरण के लिए बेरोजगारी की समस्या का विश्लेषण करने के लिए अर्थशास्त्री यह पता लगाते हैं कि ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी का कितना विस्तार है ? इसी तरह वह वर्तमान और किसी बीती हुई समय अवधि की आपस में भी तुलना करते हैं कि क्या बेरोजगारी पहले के मुकाबले घटी है या बढ़ी है |

3-कारण-परिणाम का संबंध ज्ञात करना- अर्थशास्त्री विभिन्न आंकड़ों के समूहों में कारण-परिणाम संबंध ज्ञात करने के लिए प्रयत्नशील होते हैं | किसी आर्थिक समस्या के पीछे छुपे हुए कारणों का पता लगाकर समस्याओं का प्रभावपूर्ण निदान तथा उपचार करना संभव हो जाता है । उदाहरण के लिए बेरोजगारी बढ़ने की समस्या के पीछे का कारण जनसंख्या में वृद्धि तथा उद्योगों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं होना पाया जाता है तो अर्थशास्त्री सरकार को यह सुझाव देता है कि जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाए तथा उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए ताकि देश में रोजगार बढे ।

4-आर्थिक सिद्धांतों या आर्थिक मॉडल का निर्माण- आर्थिक सिद्धांत या आर्थिक मॉडल किसी आर्थिक समस्या के कारण और परिणाम के संबंधों की व्याख्या है तथा उनके बीच संख्यात्मक संबंध है जो आर्थिक महत्व के निष्कर्ष प्रस्तुत करता है । उदाहरण के लिए किसी वस्तु की मांग तथा कीमत में वितरित संबंध पाया जाता है | यह एक पूर्व- स्थापित संबंध है | इसलिए यह आर्थिक सिद्धांत का एक भाग है । संख्यात्मक प्रयोगों के बिना किसी भी मॉडल का निर्माण करना संभव नहीं है ।

5-आर्थिक भविष्यवाणी- अर्थशास्त्री आंकड़ों के संख्यात्मक अध्ययन द्वारा भविष्यवाणी करते हैं । यह भविष्यवाणी किसी  ज्योतिषी की तरह भविष्यवाणी नहीं होती अपितु इससे अभिप्राय आर्थिक महत्व कुछ घटनाओं के संबंध में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के बारे में विचार प्रकट करने से है । उदाहरण के लिए विभिन्न वर्षो में कीमत स्तर के व्यवहार का अध्ययन करने के बाद अर्थशास्त्री यह संख्यात्मक भविष्यवाणी कर सकते हैं कि निकट भविष्य में कीमत स्तर की क्या प्रवृत्ति रहने की संभावना है | इससे हमें भविष्य में आने वाली समस्याओं के संबंध में तैयार रहने में सहायता मिलती है ।

6-नीतियों का निर्माण- किसी देश का वित्तमंत्री तथा अधिकारी सांख्यिकी अध्ययनों के द्वारा ही सरकार की आय में वृद्धि के लिए करों की दर निर्धारित करने के संबंध में निर्णय लेते हैं । वित्त मंत्री सांख्यिकी अनुसंधानों के द्वारा ही लोगों की कर देने की क्षमता के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं और इसी के आधार पर वे करों की दर को निर्धारित करते हैं ।

आर्थिक संतुलन- आर्थिक संतुलन से अभिप्राय उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के लिए स्थिर अवस्था से है | इस स्थिति में उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं की संतुष्टि अधिकतम होती है । आर्थिक संतुलन प्राप्त करने के लिए भी आर्थिक सांख्यिकी का बहुत महत्व है ।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि सांख्यिकी निश्चित रूप से आर्थिक अध्ययनों के पहिए की धुरी है । सांख्यिकी में अर्थशास्त्र के महत्व को प्रकट करने के लिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्शल ने कहा है कि “आंकड़े वे तृण (Straw) है, जिनसे प्रत्येक अन्य अर्थशास्त्री की भांति मुझे भी ईंटें बनानी पड़ती है ।”


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