Equilibrium in perfect competition market
अल्पकालीन संतुलन की स्थिति में लाभ की विभिन्न संभावनाएं-
Different possibilities of profit in a state of Short Run Equilibrium
अल्पकाल में संतुलन की स्थिति में यह आवश्यक नहीं है कि फर्म को असामान्य लाभ
अवश्य ही मिले। इस अवस्था में तीन स्थितियां हो सकती हैं-
1- फर्म को असामान्य लाभ (Super Normal
Profits) मिल सकते हैं क्योंकि अल्पकाल में नयी उद्योग में प्रवेश नहीं कर सकती हैं।
2- फर्म को सामान्य लाभ (Normal Profits) मिल सकते हैं।
3- फर्म को न्यूनतम हानि (Minimum Loss) भी उठानी पड़ सकती है क्योंकि अल्पकाल में कीमत कम होने पर भी फर्म हमेशा के
लिए उत्पादन करना बंद नहीं कर देगी। यदि यह केवल थोड़े समय के लिए उत्पादन बंद भी करेगी
तो भी उसे स्थिर लागतो की हानि उठानी पड़ेगी। यह फर्म की न्यूनतम हानि होगी।
फर्म के संतुलन की इन तीनों स्थितियों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है -
1- असामान्य लाभ
Super Normal Profits
एक फर्म संतुलन की स्थिति में तब होती है जब वह इतना उत्पादन करती है कि सीमांत आगम तथा सीमांत लागत बराबर हो जाते हैं तथा सीमांत लागत वक्र (MC), सीमांत आगम (MR) वक्र को नीचे से काटती है। एक फर्म को संतुलन की स्थिति में असामान्य लाभ उस समय प्राप्त होते हैं जब उद्योग द्वारा निर्धारित औसत आय (AR) फर्म की औसत लागत (AC) से अधिक होती है। फर्म के संतुलन की इस स्थिति को निम्न रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
Super Normal Profit |
रेखाचित्र में OX अक्ष पर वस्तु की मात्रा तथा OY अक्ष पर आय और लागत प्रकट की गई है। MC सीमांत लागत तथा AC औसत लागत वक्र है। PP औसत आगम तथा सीमांत आगम वक्र है क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में AR=MR होता है। मान लीजिए उद्योग द्वारा OP कीमत निर्धारित की गई है इस कीमत पर फर्म का संतुलन बिंदु E होगा जिस पर सीमांत लागत तथा सीमांत लागत बराबर है तथा सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को नीचे से काट रही है
संतुलन उत्पादन=OM होगा उत्पादन के इस स्तर पर औसत आगम=EM तथा औसत लागत=AM ।
क्योंकि फर्म की औसत आगम, औसत लागत से अधिक है (AR>AC) इसलिए फर्म को EA प्रति
इकाई असमान्य लाभ प्राप्त हो रहे हैं।
फर्म के असमान्य लाभ (Super Normal Profits) = उत्पादन की कुल मात्रा OM (BA) x प्रति इकाई लाभ
अर्थात EABP के बराबर होंगे ।
अतएव फर्म बिन्दु E पर संतुलन में होगी। वह OM मात्रा का उत्पादन करेगी तथा
EABP असमान्य लाभ प्राप्त करेगी।
2- समान्य लाभ
Normal Profits
एक फर्म संतुलन की अवस्था में समान्य लाभ उस समय प्राप्त करेगी जब संतुलन उत्पादन की औसत लागत (AC) तथा उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत (AR) बराबर हो जाते हैं। इसे निम्न रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि उद्योग द्वारा निर्धारित OP कीमत पर फर्म बिंदु E पर संतुलन की स्थिति में होगी तथा उत्पादन की संतुलन मात्रा OM होगी क्योंकि बिंदु की पर सीमांत लागत तथा सीमांत लागत बराबर है तथा सीमांत लागत वक्र, सीमांत आगम वक्र को नीचे से काट रही है। अतएव फर्म को संतुलन उत्पादन OM पर केवल सामान्य लाभ प्राप्त होंगे क्योंकि उत्पादन की मात्रा OM पर AC=AR=MC=MR अर्थात लागत और कीमत बराबर है।
3- न्यूनतम हानि
Minimum Loss
संतुलन की अवस्था में एक फर्म न्यूनतम हानि उस स्थिति में उठाएगी जब संतुलन उत्पादन की कीमत औसत घटती-बढ़ती लागत (AVC) के बराबर हो (AR=AVC) यदि अल्पकाल में उत्पादन बंद भी कर दिया कर दिया जाए तो फर्म स्थिर लागतों का घाटा उठाती रहेगी। स्थिर लागतों का घाटा, न्यूनतम घाटा होता है। परंतु यदि उत्पादन जारी रखने पर उस फर्म को औसत घटती बढ़ती लागत या उससे अधिक कीमत प्राप्त हो जाए तो फर्म उत्पादन जारी रखना पसंद करेगी। परंतु यदि कीमत, घटती बढ़ती लागत से भी कम हो जाए तो फर्म उत्पादन को बंद करना पसंद करेंगी।
बंद करने का बिंदु
Shut Down Point
बंद करने का बिंदु, वह बिंदु है
जिस पर फर्म को, चाहे वह कुछ भी मात्रा में उत्पादन करें, अथवा
बिल्कुल भी उत्पादन नहीं करके अल्पकाल के लिए उत्पादन बंद कर दे, एक समान हानि उठानी
पड़ती है।
बंद करने का बिंदु उस स्थिति को प्रकट करता है जिस पर फर्म की बाजार कीमत कम
होकर न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत के बराबर हो जाती है।
अन्य शब्दों में, बंद करने का बिंदु, वह बिंदु है जिस पर
कीमत, औसत परिवर्तनशील लागत के बराबर हो जाती है।
नोट : बंद करने की स्थिति से अभिप्राय एक फर्म द्वारा अपना उत्पादन सदैव के लिए बंद करने से नहीं है। इसका अभिप्राय केवल अल्पकाल के लिए उत्पादन स्थगित करने से है, जिसे लाभदायक स्थिति में दोबारा शुरू किया जा सकता है।
इसे बंद करने का बिंदु इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस बिंदु पर फर्म को उत्पादन
करने से जितनी हानि होती है उतनी ही उत्पादन बंद करने से होती है।
इस स्थिति को हम निम्न रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट कर सकते हैं-
Minimum Loss |
रेखाचित्र में AC औसत लागत तथा AVC घटती-बढ़ती लागत वक्र है। मान लीजिए उद्योग द्वारा OP कीमत निर्धारित की जाती है। इस कीमत पर फर्म बिंदु E पर संतुलन की अवस्था में होगी। क्योंकि संतुलन बिंदु E पर MC=MR तथा सीमांत लागत वक्र, सीमांत आगम वक्र को नीचे से काट रही है।
संतुलन की स्थिति में वस्तु की कीमत OP (EN) उसकी औसत लागत (AN) से (AE) के बराबर कम है। (AN-EN=AE) अन्य शब्दों में फर्म को AE के बराबर प्रति इकाई हानि हो रही है। फर्म की कुल हानि EABP के बराबर होगी।
कुल हानि (Total Loss) = कुल मात्रा (ON) x प्रति इकाई हानि (AE)
= EAPB
(छायादार भाग)
फर्म को संतुलन उत्पादन ON पर औसत घटती-बढ़ती लागत से अधिक कीमत EK प्राप्त हो रही है इसलिए फर्म को औसत लागत के केवल के भाग की हानि उठानी पड़ रही है।
यदि कीमत कम होकर OP1 हो जाती है तो संतुलन उत्पादन OM होगा। फर्म
को केवल औसत घटती-बढ़ती लागत ही प्राप्त होंगी, उसे कुल बंधी लागत की हानि उठानी पड़ेगी।
यह फर्म की न्यूनतम हानि होगी तथा फर्म OP1 कीमत पर भी उत्पादन जारी रखेगी।
OP1 कीमत पर संतुलन बिंदु R होगा।
इस बिंदु को ही उत्पादन बंद करने का बिंदु (Shut Down Point) कहते हैं। यदि कीमत को OP1 से भी कम हो जाती
है तो फर्म को औसत घटती-बढ़ती लागत की भी हानि होने लगेगी। इस स्थिति में फर्म अल्पकाल
में उत्पादन बंद करना ही पसंद करेंगी।
अतः अल्पकाल में एक फर्म घाटे/हानि की अवस्था में उस समय तक उत्पादन जारी रखेगी
जब तक उसे न्यूनतम हानि अर्थात केवल बंधी लागतो का घाटा होगा तथा फर्म की न्यूनतम कीमत
घटती बढ़ती लागत के बराबर होगी। इससे कम कीमत होने पर फर्म उत्पादन को बंद कर देगी।
अतएव उत्पादन बंद करने वाली कीमत वह कीमत है जिसके नीचे कीमत जाने से फर्म अल्पकाल
के लिए उत्पादन नहीं करना पसंद करते हैं अर्थात उत्पादन बंद कर देती है।
पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक के अल्पकालीन संतुलन को ज्ञात करने की कुल
आगम तथा कुल लागत विधि और सीमांत आगम तथा सीमांत लागत विधि की विभिन्न स्थितियों को
निम्न तालिका से स्पष्ट कर सकते हैं
स्थितियाँ |
कुल आगम तथा कुल लागत
विधि |
सीमांत आगम और सीमांत
लागत विधि |
1- क्या फर्म उत्पादन करेगी ? |
हाँ, यदि
i) TR>TC ii) TR=TVC |
हाँ, यदि i) MR>=MC ii) MR,AVC के बराबर या ज्यादा हो |
2- अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए कितना उत्पादन करना चाहिए |
जहाँ TR और TC का अंतर अधिकतम हो। |
जहाँ MR=MC तथा MC वक्र बढ़ने लगता है। |
3- कब फर्म को- i) असमान्य लाभ प्राप्त होगा ? ii) सामान्य लाभ प्राप्त होगा ? iii) हानि उठानी होगी ? |
यदि i) TR>TC ii) TR=TC iii) TR<TC |
यदि i) AR>AC ii) AR=AC iii) AR<AC |
4- उत्पादन बंद करने का बिंदु |
जहाँ TR=TVC |
जहाँ AR=AVC |
उत्पादक का दीर्घकालीन संतुलन
Long Run Equilibrium of the Producer
दीर्घकाल समय की वह अवधि है जिसमें पूर्ति को मांग के अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है। नई फर्में उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं तथा पुरानी फ़र्मे उद्योग को छोड़ सकती हैं। उद्योग की वर्तमान फर्में आवश्यकतानुसार अपने प्लांट के आकार को छोटा या बड़ा कर सकती हैं।
दीर्घकाल में भी फर्म उसी स्थिति में ही संतुलन में होगी जिसमें दीर्घकालीन
सीमांत लागत वक्र (LMC Curve-Long
run Marginal Cost Curve) सीमांत आगम वक्र (MR) के बराबर हो तथा दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र (LMCC) सीमांत आगम वक्र को नीचे से काटे।
दीर्घकाल में संतुलन की स्थिति में फर्म को केवल सामान्य लाभ भी प्राप्त होते
हैं। यदि दीर्घकाल में फर्मों को असामान्य लाभ मिलेंगे तो पुरानी फर्में अपने उत्पादन
में वृद्धि करेगी तथा नई फर्में उद्योग में प्रवेश करेंगी। इसके फलस्वरूप वस्तु की
पूर्ति बढ़ेगी और कीमत में कमी होगी। कीमत में कमी होने के कारण फर्मों को केवल सामान्य
लाभ प्राप्त हो सकेंगे। इसके विपरीत यदि दीर्घकाल में फर्मों को हानियां हो रही हैं
तो कुछ फर्में उद्योग को छोड़कर चली जाएंगी तथा बाकी फर्में अपने उत्पादन की मात्रा
कम कर लेंगी। इसके फलस्वरूप पूर्ति में कमी होगी। पूर्ति कम होने से कीमत बढ़ेगी तथा
फर्मों को फिर से सामान्य लाभ प्राप्त होने लगेंगे। अतः दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति
में एक फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होंगे, जबकि अल्पकालीन संतुलन की स्थिति
में एक फर्म को असामान्य लाभ, सामान्य लाभ तथा हानि भी हो सकती है।
दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति में एक फर्म न्यूनतम औसत लागत पर उत्पादन करेगी। इस प्रकार दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति में एक फर्म की न केवल दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) तथा सीमांत आगम ही एक दूसरे के बराबर नहीं होंगे बल्कि दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) के न्यूनतम बिंदु तथा औसत आगम या कीमत भी बराबर होंगे क्योंकि फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होंगे।
अतः दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति में फर्म का संतुलन उत्पादन उस बिंदु पर होगा जिस पर-
SMC=LMC=MR=AR/Price=Minimum
LAC=SAC
फर्म के दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति को निम्न रेखा चित्र
द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
Long Term Equilibrium |
रेखाचित्र में LAC दीर्घकालीन औसत लागत वक्र है। यह अल्पकालीन औसत लागत वक्र की तुलना में चपटा (Flatter) है। इसका कारण यह है कि दीर्घकालीन औसत लागत वक्र, अल्पकालीन औसत लागत वक्रों का योग होता है और सभी अल्पकालीन औसत लागत वक्रों को बाहर से घेर (Envelope) कर लेती है। इसी वजह से दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को लिफाफा वक्र (Envelope Curve) भी कहा जाता है।
LMC दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र तथा SMC अल्पकालीन सीमांत लागत वक्र है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उद्योग द्वारा निर्धारित OP कीमत पर फर्म बिंदु
E पर संतुलन की अवस्था में होगी तथा संतुलन उत्पादन OM होगा। इस अवस्था में बिंदु
E पर सीमांत आगम, दीर्घकालीन सीमांत लागत, औसत आगम तथा दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर
है।
फर्म दीर्घकालीन संतुलन की दशा में अपने प्लांट के आकार में इस प्रकार परिवर्तन
करती है कि उत्पादन न्यूनतम औसत लागत पर किया जा सके। संतुलन की अवस्था में अल्पकालीन
सीमांत लागत (SMC), दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) के बराबर होती है तथा अल्पकालीन औसत
लागत (SAC), दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) के बराबर होती है।
SMC=LMC=MR=AR/Price=Minimum
LAC=SAC
फर्मों का प्रवेश और बाहर जाना तथा इसके प्रभाव
Entry and Exit of Firms and its effect
दीर्घकाल में अधिकतम लाभ कमाने वाली सभी फर्में वस्तु का उत्पादन उस स्तर पर करेंगी जिस पर कीमत दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) के बराबर है तथा औसत लागत न्यूनतम है।
A- फर्मों का प्रवेश-ऊँची कीमत का आकर्षण
Entry of firms-Attraction to Higher Price
अल्पकाल में फर्म को असमान्य लाभ हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में SAC वक्र, कीमत
रेखा से नीचे होती है। परंतु दीर्घकाल में असमान्य लाभ को बनाए नहीं रखा जा सकता। इसे निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है-
Entry of Firms |
रेखाचित्र में उद्योग
और फर्म दोनों का संतुलन दिखाया गया है। उद्योग में अन्य फर्मों की भांति, फर्म को
असमान्य लाभ अर्जित करते हुए दिखलाया गया है। इन लाभों को छायादार भाग (P0ABP1)
द्वारा प्रकट किया गया है। परंतु लाभों को
दीर्घकाल में प्राप्त नहीं कर सकते। दी हुई कीमत OP0 पर उद्योग का उत्पादन N0 तथा फर्म
का उत्पादन X0 है। यह अन्य उद्योग में काम करने वाली
फर्मों को अपनी ओर आकर्षित करेगा। इसके फलस्वरूप उद्योग का पूर्ति वक्र दायीं और
सरक कर S’S’ हो जाएगा। पूर्ति बढ़ने से उद्योग की नई कीमत OP0 से घटकर OP1 हो जाती है और OP1
कीमत पर फर्म का उत्पादन घटकर X1 हो
जाता है और प्रत्येक फर्म SAC के न्यूनतम बिंदु पर उत्पादन कर रही है।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि उद्योग में नई फर्मों के प्रवेश की प्रक्रिया तब तक
जारी रहती है जब तक कीमत घटकर OP1 नहीं हो जाती और अतिरिक्त लाभ या असमान्य
लाभ समाप्त नहीं हो जाते। यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भले ही प्रत्येक फर्म
अब पहले से कम उत्पादन (X0 के बजाय X1) कर रही है परन्तु उद्योग की कुल पूर्ति N0 से बढ़कर N1
हो जाती है। इसका कारण उद्योग में नई फर्मों का प्रवेश करना है।
B- फर्मों का उद्योग छोड़ना-कम कीमत द्वारा बाधित
Exit of Firms-Induced by Lower Price
अल्पकाल में होने वाली हानि, फर्मों को बाध्य करती हैं कि दीर्घकाल में वह उद्योग को छोड़कर बाहर चली जाए।
सभी फर्म उस कीमत पर कार्य कर रही है जो SAC से कम है परंतु SVC (Short
term Variable Cost-अल्पकालीन घटती-बढ़ती लागत) से अधिक है, इसलिए फर्में हानि उठाते हुए भी कार्य कर रही है। परंतु फिर भी
कीमत से वह घटती बढ़ती लागत निकाल रही है। इसलिए यह कीमत उत्पादन बंद वाले स्तर से
ऊपर है और निवेश पर प्राप्त होने वाला प्रतिफल अवसर लागत से ज्यादा है।
इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि प्रत्येक फर्म हानि उठाती हुई कार्य कर रही है। यह हानि छायादार भाग P0ABP2 से प्रकट है। अल्पकाल में तो फर्म न्यूनतम हानि सहन कर सकती है परंतु दीर्घकाल में कोई भी फर्म हानि की स्थिति में, अपने उत्पादन को जारी नहीं रखेगी। अतः इस स्थिति कुछ फर्में उद्योग को छोड़ देंगी। इसके फलस्वरूप उस उद्योग का पूर्ति वक्र बायीं और सरक कर SS से S’S’ हो जाएगा।
नई बाजार कीमत को OP1 होगी तथा नई पूर्ति ON1 होगी। कीमत का OP0
से बढ़कर और OP1 होने से फर्में फिर
से सामान्य लाभ अर्जित करने की स्थिति में हो जाएंगी।
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि प्रत्येक फर्म कीमत वृद्धि के अनुरूप अपने
उत्पादन को बढ़ाएगी परंतु उद्योग का कुल उत्पादन/पूर्ति कम हो जाती है। इसका कारण यह है कि उद्योग में फर्मों की संख्या
कम हो गई है।
Note:
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