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Consumer Behavior, Budget Line & Marginal Rate of Substitution | Economics Online Class

Consumer Behavior, Budget Line & Marginal Rate of Substitution



In this post of Economics Online Class, we will learn about Consumer Behavior, Budget Line & Marginal Rate of Substitution.

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TOPIC

Economics Online Class : Consumer Behavior, Budget Line & Marginal Rate of Substitution

अध्याय 3-उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत

 (Theory of consumer Behavior)


उपभोक्ता व्यवहार की धारणा

Concept of Consumer Behaviour)


 उपभोक्ता व्यवहार की धारणा का ध्यन करने से पहले हम निम्न अवधारणाओं को जानना आवश्यक है

उपभोक्ता कौन है ? (Who is Consumer)

आमतौर पर एक व्यक्ति को उपभोक्ता कहा जाता है परंतु अर्थशास्त्र में उपभोक्ता शब्द का प्रयोग संस्थाओं, व्यक्तियों या व्यक्तियों के समूह अर्थात परिवारों के लिए किया जाता है। उपभोक्ता वह विवेकशील व्यक्ति होता है जो अपनी  सीमित आय को वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करता है तथा अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करता है। उपभोक्ता अपने व्यय से उपयोगिता प्राप्त करता है। उपभोक्ता अपनी आय को इस प्रकार खर्च करता है कि उसे दी हुई आय  और वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त हो सके। अन्य शब्दों में, उपभोक्ता का उद्देश्य उपभोक्ता संतुलन की स्थिति प्राप्त करना होता है।

उपभोक्ता संतुलन (Consumer Equilibrium)

एक उपभोक्ता उस समय संतुलन की अवस्था में होता है जब वह अपने व्यवहार को वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अच्छा मानता है तथा उसमें जब तक परिस्थितियों में परिवर्तन में हो, कोई परिवर्तन करना पसंद नहीं करता।
सैमुअल्सन के शब्दों में, एक उपभोक्ता उस समय संतुलन में होता है जब वह अपने दी हुई आतथा बाजार कीमतों से प्राप्त संतुष्टि को अधिकतम कर लेता है।

उपयोगिता क्या है? (What is Utility ?)

किसी वस्तु की वह शक्ति जिसके द्वारा आवश्यकता की संतुष्टि होती है, उपयोगिता कहलाती है। उदाहरण के लिए प्यास लगने पर हम पानी पीकर संतुष्ट हो जाते हैं। पानी की यह शक्ति जिसके द्वारा हम अपनी प्यास संतुष्ट कर सकते हैं, पानी की उपयोगिता कहलाती है।
लिप्सी के अनुसार, उपयोगिता वसंतुष्टि है जिसे कोई व्यक्ति उपभोग के फलस्वरूप प्राप्त करता है।

उपभोक्ता व्यवहार क्या है?

What is Consumer Behaviour

उपभोक्ता व्यवहार से अभिप्राय उस विधि से है जिसके द्वारा उपभोक्ता यह चुनाव करते हैं कि वह अपनी आय को किस प्रकार खर्च करेंगे। उपभोगता के इस व्यवहार का अध्ययन ही उपभोक्ता व्यवहार अध्ययन कहलाता है।

उपभोक्ता बजट (बजट समूह तथा बजट रेखा)

Consumer’s Budget (Budget Set and Budget Line)


उपभोक्ता बजट से अभिप्राय उपभोक्ता के निर्धारित आय से हैं।

उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन करने के लिए हम यह मान लेते हैं कि उसके पास एक निश्चित आहैं। इसके साथ ही यह भी मान लिया जाता है कि उपभोक्ता इस निश्चित आय को दो वस्तुओं की खरीद पर खर्च करता है तथा उन दो वस्तुओं की कीमतें पहले से ही निर्धारित है जिनका उपभोक्ता को ज्ञान है। मान लीजिए कि एक उपभोक्ता का बजट ₹60 है तथा सेब और संतरा वह दो वस्तुएं हैं जिन पर उपभोक्ता अपने ₹60 खर्च करता है। सेब की कीमत ₹2 प्रति इकाई तथा संतरे की कीमत ₹1 प्रति इकाई है। एक उपभोक्ता विभिन्न अनुपातों में इन वस्तुओं को खरीद सकता है, जिसे हम निम्न तालिका से प्रकट कर सकते हैं।

उपभोक्ता के लिए विभिन्न उपभोग सम्भावनाएँ
वस्तु-1 (सेब) की इकाईयां
वस्तु-2 (संतरा) की इकाईयां
0
60
10
40
20
20
30
0

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि यदि एक उपभोक्ता अपने समस्त आय पहली वस्तु अर्थात सेब खरीदने पर खर्च करता है तो वह इसकी 30 इकाईयां प्राप्त कर सकता है। इसके विपरीत यदि वह अपनी समस्त आदूसरी वस्तु अर्थात संतरे के लिए खर्च करता है तो वह इसकी 60 इकाईयां प्राप्त कर सकता है।
इसी तरह उपभोक्ता विभिन्न संयोगों के बारे में भी सोच सकता है जो एक उपभोक्ता अपनी तथा वस्तु-1 और वस्तु=2 की दी गयी कीमतों खरीद सकता है।

बजट समूह (Budget Set)
यह दो वस्तुओं के एक समूह के प्राप्य संयोगों को व्यक्त करता है। जब वस्तुओं की कीमतें तथा उपभोक्ता की आय दी हुई है।

उपरोक्त अवधारणा को हमने रेखा चित्र द्वारा भी समझा सकते हैं-

Budget Line, Economics online class
Budget Line
रेखा चित्र में OX अक्ष पर सेतथा OY अक्ष पर संतरा दर्शाया गया है उपभोग सम्भावना तालिका में दर्शाए गए विभिन्न बिंदुओं के आधार पर एक रेखा AD खींची जा सकती है। इस AD रेखा को बजट लाइन (BUDGET LINE) कहा जाता है।

बजट रेखा (BUDGET LINE)

बजट रेखा वह रेखा है जो वस्तु-1 तथा वस्तु-2 के उन सभी संभव संयोगों को प्रकट करती है जो दिए हुए अपने बजट तथा दोनों वस्तुओं की दी गयी कीमत पर एक उपभोक्ता खरीद सकता है। बजट रेखा के किसी भी बिंदु पर उपभोक्ता अपनी समस्त आय वस्तु-1 पर या वस्तु-2 पर या दोनों वस्तुओं के संयोगों पर खर्च कर रहा है।
इस बजट रेखा को कीमत रेखा (Price Line) भी कहा जाता है।
इसका कारण यह है कि यह बजट रेखा (AD) यह प्रकट करती हैं कि बाजार में वस्तु-1 की 30 इकाइयां, वस्तु-2 की 60 इकाइयों के बराबर है। इसलिए-
वस्तु-1 की एक इकाई की कीमत=वस्तुओं की दो इकाइयों की कीमत
या  P1/P2=60/30 =2/1
अतएव कीमत रेखा वस्तु-1 तथा वस्तु-2 के बीच कीमत अनुपात को प्रकट करती है। यह दर्शाता है कि वस्तु-1 की एक इकाई प्राप्त करने के लिए वस्तु-2 दो इकाइयों का त्याग करना पड़ेगा।


प्राप्य (अथवा सम्भाव्य) तथा प्राप्य (अथवा असम्भाव्य) संयोग

Attainable (or Feasible) and Non-Attainable (Non-feasible) Combinations

एक उपभोक्ता अपनी बजट रेखा के सीमा से बाहर नहीं जा सकता है इसलिए बजट रेखा की सीमा से बाहर कोई भी बिंदु यह असम्भाव्य संयोग को प्रकट करता है। इसी तरह बजट रेखा (AD) की सीमा के अंदर कोई भी संयोग प्राप्य है।

Attainable (or Feasible) and Non-Attainable (Non-feasible) Combinations, economics online class

Attainable (or Feasible) and Non-Attainable (Non-feasible) Combinations


रेखाचित्र में
OAD क्षेत्र सम्भाव्य क्षेत्र कहलाता है। उपभोक्ता इस क्षेत्र में किसी भी संयोग को खरीदने की क्षमता रखता है। इसके विपरीत OAD क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र को असम्भाव्य क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि उपभोक्ता के पास उन संयोगों को खरीदने की क्षमता नहीं होती।

तटस्थता समूह

Indifference Set

तटस्थता समूह दो वस्तुओं के उन संयोगों का समूह है, जो उपभोक्ता को संतुष्टि का समान स्तर प्रदान करते हैं। इसलिए उपभोक्ता इन सभी संयोगो के प्रति तटस्थ होता है
इसे हम निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
तटस्थता समूह तालिका
सेब तथा संतरे के संयोग
सेब
संतरे
A
1
10
B
2
7
C
3
5
D
5
4


उपरोक्त तालिका में हम यह मान लेते हैं कि संयोग A,B,C,D उपभोक्ता को एक समान संतुष्टि प्रदान करते हैं। उपभोक्ता की पसंद इस प्रकार होगी कि
A से प्राप्त संतुष्टि= B से प्राप्त संतुष्टि= C से प्राप्त संतुष्टि= D से प्राप्त संतुष्टि
उपभोक्ता ABCD संयोगों में कोई अंतर नहीं पाता और ABCD संयोगों से समान रूप से संतुष्ट है। इसलिए उपभोक्ता ABCD संयोगों के बीच तटस्थ है। इसलिए इन संयोगों को तटस्थता संयोग कहा जाता है।

ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम और उपभोक्ता के प्राथमिकताएं

Law of Diminishing Marginal Rate of Substitution & Consumer Behavior


जैसे-जैसे उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उस वस्तु की इच्छा की गहनता भी कम होती जाती है। इसके विपरीत जैसे-जैसे उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की मात्रा कम होती जाती है, वैसे-वैसे ही उस वस्तु की च्छा की गहनता बढ़ती जाती है।
इसे हम निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति को बहुत जोर से प्यास लगी है। यदि उसे 4 गिलास पानी या 4 रोटियों में से चुनाव करने को कहा जाए तो निश्चित रूप से वह पानी चुनेगा। जैसे-जैसे वह व्यक्ति पानी पीता जाएगा, उसकी प्यास मिटती जाएगी और पानी पीने की इच्छा भी कम होती जाएगी। इसके साथ ही प्यास मिटते ही उसकी रोटियों की को पाने की इच्छा बढ़ती जाएगी।
अन्य शब्दों में, हम कह सकते हैं कि जिस दर पर वह दूसरी वस्तु अर्थात रोटी का, पहली वस्तु अर्थात पानी की प्रत्येक इकाई के लिए त्याग करेगा वह दर कम होती चली जाती है। उपभोक्ता की यह प्रवृत्ति नियमानुसार चलती है। इसलिए उपभोक्ता की इस प्रवृत्ति को ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम (Law of Diminishing Marginal Rate of Substitution) कहा जाता है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब उपभोक्ता एक वस्तु की कुछ इकाईयों के बदले में दूसरी वस्तु को स्थान देता है तो उसका कुल संतुष्टि स्तर समान रहता है। अर्थात उसकी कुल संतुष्टि स्तर में कोई वृद्धि या कमी नहीं होती।

इसे तटस्थता समूह तालिका द्वारा और अच्छी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं।

तटस्थता समूह तालिका ह्रासमान सीमांत प्रतिस्थापन दर का नियम

सेब तथा संतरे के संयोग

सेब

संतरे
सीमांत प्रतिस्थापन दर
(Marginal rate of Substitution-MRS)
A
1
10

B
2
7
3:1 (उपभोक्ता 1 अतिरिक्त सेब के बदले 3 संतरों के त्याग करने को तैयार है)
C
3
5
2:1 (उपभोक्ता 1 अतिरिक्त सेब के बदले 3 संतरों के त्याग करने को तैयार है)
D
5
4
1:1 (उपभोक्ता 1 अतिरिक्त सेब के बदले 3 संतरों के त्याग करने को तैयार है)

जैसा कि तालिका से स्पष्ट है कि प्रारंभ में उपभोक्ता एक सेब तथा 10 संतरे लेता है। फिर संयोग B में एक अतिरिक्त सेब लेने के लिए वह तीन संतरों का त्याग करने के लिए तैयार है। यहां सीमांत प्रतिस्थापन दर 3:1 की है। संयोग C में उपभोक्ता एक और सेब के बदले में केवल दो संतरों का त्याग करने के लिए तैयार है। अब सीमांत प्रतिस्थापन दर घट कर 2:1 रह जाती है। इसके बाद संयोग D में एक और सेब के बदले में उपभोक्ता केवल एक ही संतरे का त्याग करने को तैयार है। अर्थात उसके सीमांत प्रतिस्थापन दर घटकर 1:1 रह जाती है। किसी भी परिस्थिति में उपभोक्ता के कुल संतुष्टि स्तर में कोई कमी या वृद्धि नहीं होती। सेब और संतरे के विभिन्न संयोग और ABCD से मिलने वाला संतुष्ट कर सामान रहता है।


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