Limitations of Statistics | Economics Online Class
Limitations of Statistics
In this post of Economics Online Class, we will learn about Statistics as singular Noun and its importance in details.
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सांख्यिकी
के सीमाएं (Limitations of Statistics)
आधुनिक युग में सांख्यिकी ने अध्ययन के सभी क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण स्थान
प्राप्त कर लिया है । परंतु इस शास्त्र की कुछ सीमाएं हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर
ही इसका प्रयोग करना चाहिए । न्यूज़होम के अनुसार, “सांख्यिकी को अनुसंधान का एक
मूल्यवान साधन समझना चाहिए । परंतु इसकी कुछ गंभीर सीमायें है जिन्हें दूर किया जाना
संभव नहीं है ।”
सांख्यिकी की कुछ महत्वपूर्ण सीमाएं निम्नलिखित हैं।
1-केवल संख्यात्मक तत्वों का अध्ययन- सांख्यिकी केवल ऐसे तथ्यों का अध्ययन करती है जिन्हें संख्याओं
में व्यक्त किया जा सकता है जैसे वजन, ऊंचाई, लंबाई, आयु आदि | इसके अंतर्गत गुणात्मक
तथ्यों जैसे ईमानदारी, मित्रता, बुद्धिमता, देश-प्रेम आदि का अध्ययन नहीं किया जा सकता
।
2-केवल समूहों का अध्ययन- सांख्यिकी के अंतर्गत संख्यात्मक तथ्यों के समूह का अध्ययन किया जाता है ।
इसमें किसी एक इकाई का अध्ययन नहीं किया जा सकता । उदाहरण के लिए यदि राम की प्रतिमाह
आय 10000 है तो इसका सांख्यिकी में अध्ययन नहीं
किया जाएगा । परंतु यदि कहा जाए कि राम के आय 10000, श्याम की
आय 15000 तथा मोहन की
आय 12000 है तो हम इनकी आपस में तुलना कर सकते हैं तथा निष्कर्ष
निकाल सकते हैं ।
3-आंकड़ों की एकरूपता या सजातीयता होना आवश्यक शर्त है- आंकड़ों की तुलना करने के लिए यह आवश्यक है कि जो आंकड़े
एकत्रित किए जाए वह एक ही गुण को प्रकट करने वाले हो । भिन्न-भिन्न प्रकार के गुणों को प्रकट करने वाले आंकड़ों के परस्पर
तुलना नहीं की जा सकती । उदाहरण के लिए कपड़े तथा अनाज के उत्पादन की, मात्रा के अनुसार
तुलना करना संभव नहीं है । क्योंकि कपड़े को मीटर में तथा अनाज टन में व्यक्त किया
जाता है । इसके विपरीत उत्पादन की मात्रा के बजाय उत्पादन के मूल्यों में तुलना संभव
है ।
4-परिणाम केवल औसतन सत्य होते हैं- सांख्यिकी के नियम केवल औसत रूप से ही सत्य होते हैं । यह
केवल प्रवृत्ति को ही प्रकट करते हैं । भौतिकी विज्ञान या रसायन शास्त्र की तरह सांख्यिकी
के नियम पूर्ण रूप से सत्य नहीं होते । उदाहरण के लिए यदि कहा जाए कि भारत में प्रति
व्यक्ति आय ₹32000 प्रति वर्ष है तो इसका अर्थ यह नहीं
है कि प्रत्येक व्यक्ति की आय ₹32000 है | कुछ व्यक्तियों की
आय इससे अधिक हो सकती है तथा कुछ व्यक्तियों की इससे कम हो सकती है । यह कथन केवल एक
औसत के रूप में ही सही है ।
5-बिना संदर्भ के निष्कर्ष गलत हो सकते हैं- सांख्यिकी निष्कर्षों को भली प्रकार से समझने के लिए यह आवश्यक है कि उन परिस्थितियों
का भी अध्ययन किया जाए जिनमें निष्कर्ष निकाले गए हैं । अन्यथा वह असत्य सिद्ध हो सकते
हैं । उदाहरण के लिए कपड़े के व्यवसाय में लगी एक फर्म का 3 वर्षों का लाभ क्रमशः ₹1000,
₹2000 तथा ₹3000 हैं । इसके विपरीत इसी तरह की
एक दूसरी फर्म का 3 वर्षों का लाभ क्रमशः ₹3000, ₹2000 तथा ₹1000 है | दोनों का
औसत लाभ ₹2000 होता है | इससे यदि परिणाम निकाला जाए कि दोनों
व्यवसाय एक ही अवस्था में है तो यह गलत होगा । संदर्भ में देखा जाए तो हम कह सकते हैं
कि पहली फर्म का लाभ प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है जबकि दूसरी फर्म का लाभ घटता जा रहा है ।
6-केवल विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग- सांख्यिकी का प्रयोग केवल उन व्यक्तियों द्वारा ही किया
जाना चाहिए जिन्हें सांख्यिकी विधियों का विशेष ज्ञान है । साधारण व्यक्ति सांख्यिकी
का प्रयोग नहीं कर सकते । वे गलत निष्कर्ष निकाल सकते हैं | अयोग्य मनुष्य के हाथ में
आंकड़े, अयोग्य डॉक्टर के हाथ में दवाई के समान हैं जिनका दुरुपयोग बड़ी आसानी से अनजाने
में हो सकता है । यूल तथा कैंडाल के शब्दों में, “अयोग्य मनुष्य के हाथ में सांख्यिकी
विधियां सबसे भयानक हथियार हैं ।”
7-दुरुपयोग संभव- सांख्यिकी द्वारा गलत बात को भी सही साबित किया जा सकता है। आंकड़ों के संबंध
में यह कहा जाता है कि “समंक गीली मिट्टी के समान है जिनसे आप देवता या शैतान की
मूर्ति जो चाहे बना सकते हैं ।” सांख्यिकी का दुरूपयोग उसकी सबसे बड़ी
सीमा है |
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